The story of Virender Sehwag.
मुल्तान का सुल्तान और नजफगढ़ का नवाब जैसे नामों से मशहूर, Virender Sehwag क्रिकेट की दुनिया में एक रन मशीन के तौर पर जाने जाते थे। क्या आप जानते हैं कि उनके विस्फोटक बल्लेबाजी अंदाज ने उन्हें यह खास पहचान दिलाई? आज हम इस महान क्रिकेटर के जीवन और करियर की गहराई में उतरेंगे।

शुरुआती जीवन और परिवार: “वीरू” का जन्म
वीरेंद्र सहवाग का जन्म 20 अक्टूबर 1978 को दिल्ली में हुआ था। उनके पिता अनाज के व्यापारी थे। सहवाग का बचपन एक संयुक्त परिवार में बीता। संयुक्त परिवार का मतलब है कि वे अपने दादा-दादी, चाचा-चाची और चचेरे भाई-बहनों के साथ रहते थे। परिवार में सबसे छोटे होने की वजह से उन्हें प्यार से “वीरू” बुलाया जाता था।
जब वीरू सिर्फ सात महीने के थे, तब उनके पिता ने उन्हें एक प्लास्टिक का बैट उपहार में दिया था। उनकी बड़ी बहन बताती हैं कि वीरू को वह बैट इतना पसंद था कि वे उसके बिना सोते भी नहीं थे। यह छोटी सी कहानी दिखाती है कि क्रिकेट के प्रति उनका प्यार कितना गहरा था।
वीरू ने अपनी शुरुआती शिक्षा अरोरा विद्या स्कूल से प्राप्त की, जहाँ वे खूब क्रिकेट खेला करते थे। लेकिन जब उनके टीचर ने उनके पिता को इस बारे में बताया, तो वे नाराज हो गए। उन्होंने वीरू को पढ़ाई पर ध्यान देने के लिए कहा, क्योंकि उन्हें लगता था कि क्रिकेट भविष्य में उनके लिए उपयोगी नहीं होगा।
बाधाओं से पार पाना: पिता की अस्वीकृति और माँ का समर्थन
वीरू के पिता नहीं चाहते थे कि वह क्रिकेट खेले। उनका मानना था कि पढ़ाई ज्यादा जरूरी है। लेकिन वीरू का क्रिकेट के प्रति जुनून कम नहीं हुआ।
एक बार वीरू के पिता ने उन्हें क्रिकेट खेलने से मना किया, तो वे नहीं माने। गुस्से में उनके पिता ने उन्हें थप्पड़ मार दिया, जिससे उनका दाँत टूट गया। दाँत टूटने के बावजूद वीरू ने क्रिकेट खेलना नहीं छोड़ा। उनकी माँ ने उनके क्रिकेट के प्रति इस जुनून को समझा और उनके पिता को समझाया कि वीरू एक दिन क्रिकेट में जरूर सफल होगा। उनकी माँ के समर्थन ने वीरू के करियर में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
तरक्की की राह: दिल्ली क्रिकेट से अंतरराष्ट्रीय स्तर तक
वीरू के कोच अमरनाथ शर्मा ने उन्हें एक आक्रामक बल्लेबाज के रूप में प्रशिक्षित किया। उन्होंने जामिया मिलिया इस्लामिया से ग्रेजुएशन की। जवानी के दिनों में वीरू सचिन तेंदुलकर के बहुत बड़े फैन थे और उन्हीं की तरह बनना चाहते थे।
1997 में उन्हें दिल्ली क्रिकेट टीम में चुन लिया गया। उन्होंने दिलीप ट्रॉफी में सबसे ज्यादा रन बनाने वालों की लिस्ट में पाँचवाँ स्थान हासिल किया। इसके बाद उन्हें अंडर-19 टीम में साउथ अफ्रीका का दौरा करने का मौका मिला।
सहवाग का पहला ओडीआई मैच पाकिस्तान के खिलाफ था, जिसमें उन्होंने ज्यादा रन नहीं बनाए और गेंदबाजी में भी कुछ खास नहीं कर पाए। इस वजह से उन्हें 20 महीनों तक दोबारा ओडीआई खेलने का इंतजार करना पड़ा। फिर उन्हें जिंबाब्वे के खिलाफ दोबारा मौका दिया गया। इस मैच में उन्होंने शानदार बल्लेबाजी की और साबित कर दिया कि वे किसी से कम नहीं हैं। उन्हें मैन ऑफ द मैच का पुरस्कार भी मिला।

अंतर्राष्ट्रीय करियर: एक शानदार सफर
शुरुआत में ओडीआई में संघर्ष करने के बाद, 2004 में उन्हें ओपनिंग करने का मौका मिला। उन्होंने सिर्फ 69 गेंदों में शतक जड़ दिया। इसके बाद हर मैच के साथ वीरेंद्र सहवाग का प्रदर्शन बेहतर होता गया। खासकर पाकिस्तान के खिलाफ उनका प्रदर्शन हमेशा शानदार रहा।
2009 में उन्होंने सिर्फ 60 गेंदों में शतक बनाकर भारत की सबसे तेज सेंचुरी का रिकॉर्ड बनाया। इससे भारत ने न्यूजीलैंड के खिलाफ सीरीज भी जीत ली। 2011 में उन्होंने वेस्टइंडीज के खिलाफ 149 गेंदों में 219 रन बनाकर अपना उच्चतम ओडीआई स्कोर बनाया। उस समय सचिन तेंदुलकर के साथ उनकी बल्लेबाजी जोड़ी से दुनिया भर के गेंदबाज डरने लगे थे। वीरू ने गौतम गंभीर के साथ भी लंबे समय तक बल्लेबाजी की और इन दोनों की पार्टनरशिप को हमने 2011 वर्ल्ड कप में देखा था।
शैली और प्रभाव: वह क्या था जिसने उन्हें महान बनाया
वीरेंद्र सहवाग अपने आक्रामक बल्लेबाजी के लिए जाने जाते थे। वे गेंदबाजों से डरते नहीं थे और तेजी से रन बनाकर विपक्षी टीम पर दबाव बनाते थे। उन्होंने भारतीय क्रिकेट पर गहरा प्रभाव डाला और वे भविष्य के खिलाड़ियों के लिए प्रेरणा बने।
क्रिकेट के मैदान से परे: स्कूल और रिटायरमेंट
2011 में उन्होंने सहवाग इंटरनेशनल स्कूल नाम से एक स्कूल शुरू किया। सहवाग इंटरनेशनल स्कूल उनके और उनके पिता का सपना था।
आखिरकार 20 अक्टूबर 2015 को उन्होंने क्रिकेट के सभी फॉर्मेट से रिटायरमेंट ले लिया।
श्रद्धांजलि और प्रशंसा: एक क्रिकेट लीजेंड की याद
ब्रेट ली ने उनके लिए कहा था कि “इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कितने अच्छे और अनुभवी हैं, वीरू आपके आत्मविश्वास को खत्म कर सकते हैं।” हरभजन सिंह उनके बारे में कहते हैं, “जब भी मैं उन्हें गेंदबाजी करता था, तो लगता था कि अब आउट हो जाएंगे, लेकिन देखते ही देखते वे शतक बना देते थे।”
वीरेंद्र सहवाग ने अपने परिवार के खिलाफ जाकर अपने सपनों को पूरा किया और आसमान की ऊंचाइयों को छुआ।
निष्कर्ष
वीरेंद्र सहवाग का जीवन एक प्रेरणादायक कहानी है। उन्होंने दिखाया कि अगर आपके अंदर लगन और आत्मविश्वास है, तो आप किसी भी मुश्किल को पार कर सकते हैं। उनकी कहानी हमें सिखाती है कि हमें कभी भी अपने सपनों को नहीं छोड़ना चाहिए।
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